कि आसमान ने बाँहें फैला कर
धरती को गले से लगा लिया
त्रिपुरा ने हरी चादर कफ़न पर डाली
और सुबह की लालिमा ने
आँखों का पानी पोंछ कर
धरती के कंधे पर हाथ टिकाया
कहा—
थोड़ी-सी महक विदा हुई है
पर दिल से न लगाना
कि आसमान ने तुम्हारी महक को
सीने में सँभाल लिया है...
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