अब तो मुझको मुझी से चुराने लगी हो तुम
तेरी चाहते का छाया है सुरूर इस कदर
हर पल हर जगह नजर आने लगी हो तुम
वीरान थी यह जिन्दगी तेरे आने से पहले
खुशियों के सपने दिखाने लगी हो तुम
हर पल मुझे यह एहसास होता है तेरा
इस कदर मेरे सांसों में घुलने लगी हो तुम
एक पल की भी दूरी सह नहीं पाता हूं मैं
हो कर दूर मुझसे क्यों आजमाने लगी हो तुम
राह चलते अक्सर होता है यह गुमान मुझको
की बन साया मेरे साथ चलने लगी हो तुम
नाम कोई भी लिख लूं तो नाम आय तेरे लबों पर
बन कर जादू मेरे रूह में समाने लगी हो तुम
तेरी यादों से ही दिल होना है कनक मेरा
घुल कर साथ लहू के नस नस में समाने लगी हो तुम
जानें कौन सी डोर है तेरी और खींच ले जाती हो तुम
मुझ को अपना दीवाना बनाने लगी हो तुम
ये तो बता क्या नाम दूं इस दीवानगी काे
बेचैन कर के है लम्हा मुझे तड़पाने लगी हो तम
तेरे ख्यालों से सिर्फ महकने लगी है मेरी जिन्दगी
मेरे जेहन और दिल में इस कदर छाने लगी हो तुम
यह मासूमियत यह भोलापन यह सादगी तेरी
मुझको हर अदा से अब सताने लगी हो तुम
जेठ की गर्मी में भी तुम बारिश बन कर बरसने लगीं हो तुम
मेरी आंखे तुम को ढूंढ़ती रहती है क्या बंद होने
से पहले तक भी मेरी बाहों में आ पाऊंगी तुम
क्या इस बात का एहसास है तुम्हें श्रृति
मेरी हर कविता हर गजल में आने लगी हो तुम
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