मन का सौदा है
हृदय बीच वटवृक्ष
समक्ष बस पौधा है
कितनी जागीरें नष्ट हुईं
इसे पाने में
कितने मतवाले दिल को
इसने रौंदा है
लब की खामोशी देख कभी
यह सोचा है
तन का मन से कोई मेल नहीं
अलग्योझा है
संग संग रहना महज़
एक धोखा है
जीवन यापन के हेतु
बड़ा समझौता है
अक्षुण्ण रहता है प्रेम
वह हृदय घरौंदा है
इतने वर्षों से प्रश्न
ये मन में कौंधा है
कुछ नहीं प्रिये यह प्रेम तो
मन का सौदा है
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