तुम यूँ ख़फा हुए ।
ज़रा सी बात पर
बस यूँ ही चल दिए।
जरा सी देर क्या हुई
नज़र यूँ फिरा लिए
जैसे हम नहीं कोई
जहाँ अलग बसा लिए ।
रूठना ही तो था,
एक बहाने की तलाश थी
ख़बर थी कहाँ तुझे
मैं कितनी हताश थी
पूछा भी नहीं
नयी महफ़िल सजा लिए।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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