दूर मैं आज कोसों सही,
पर पास एक किनारा था।।
इन काली रातों का सहमा हूं मैं,
आता है बेपरवाह सोना मुझे भी।।
दौड़ भाग से थक चुका हूं मैं,
आता है बेपनाह रोना मुझे भी।।
आंखें में बेशक आंसू नहीं,
पर भीगे हैं जज़्बात मेरे सभी।।
इस दौर का मैं बेशक नहीं,
भागता रहूं, अब वो बात नहीं।।
दूर है बेशक घर मेरा,
हर राह याद मुझे आज भी।।
मिले जो काश बचपन मेरा,
लौट मैं जाऊं आज ही।।
पूछ रही पुकार मेरे कानों में,
क्या मैं लौट पाऊंगा कभी?
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