Tuesday, October 13, 2020

हर एक बात को चुप-चाप क्यूं सुना जाए- निदा फ़ाज़ली

हर एक बात को चुप-चाप क्यूं सुना जाए 
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए 


तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है 
लगी है आग कहां क्यूं पता किया जाए

जुदा है हीर से रांझा कई ज़मानों से 
नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए 


कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है 
ये कितना सच है कभी तजरबा किया जाए


किताबें यूं तो बहुत सी हैं मेरे बारे में 
कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए 

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