हसरतों की डोली.
अश्कों की वैतरणी,
स्मृतियों की पूंजी.
गमगीन अन्धेरे,
वीरान सवेरे.
मध्यम होते चिराग,
बूझते हूए दीये
और गहराता एकान्त .
तेरे प्रेम मिलन के
योग वियोग
के गणित का
क्या यही
गूणाकं, शेषांक था ?
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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