Sunday, October 25, 2020

रमा है सबमें राम - मैथिलीशरण गुप्त

रमा है सबमें राम, 
वही सलोना श्याम। 

जितने अधिक रहें अच्छा है 
अपने छोटे छन्द, 
अतुलित जो है उधर अलौकिक 
उसका वह आनन्द 
लूट लो, न लो विराम; 
रमा है सबमें राम। 

अपनी स्वर-विभिन्नता का है 
क्या ही रम्य रहस्य; 
बढ़े राग-रञ्जकता उसकी 
पाकर सामंजस्य
गूँजने दो भवधान, 
रमा है सबमें राम। 


बढ़े विचित्र वर्ण वे अपने 
गढ़ें स्वतन्त्र चरित्र; 
बने एक उन सबसे उसकी 
सुन्दरता का चित्र। 
रहे जो लोक ललाम, 
रमा है सबमें राम। 
अयुत दलों से युक्त क्यों न हों 
निज मानस के फूल; 
उन्हें बिखरना वहाँ जहाँ है 
उस प्रिय की पद-धूल।
 
मिले बहुविधि विश्राम, 
रमा है सबमें राम। 
अपनी अगणित धाराओं के 
अगणित हों विस्तार; 
उसके सागर का भी तो है 
बढ़ो बस आठों #याम, 
रमा है सबमें राम। 
हुआ एक होकर अनेक वह 
हम अनेक से एक, 
वह हम बना और हम वह यों 
अहा ! अपूर्व विवेक। 
भेद का रहे न नाम, 
रमा है सबमें राम।

याम-1. समय; काल 2. तीन घंटे का काल; पहर, यम संबंधी; यम का। 

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