Tuesday, October 20, 2020

शाखों पर बैठकर गुजारी हमने रातें

उन शाखों पर बैठकर गुजारी हमने रातें
डर था जिनके कट जाने का

लोगों ने कहा ये तो पागल है
भरोसा नहीं इनके बच पाने का

तांकते रहे उन रास्तों को हम
डर था जिससे दुश्मन क़े आने का

सुरक्षित है आज हमी से वो लोग
जिनको डर था अपने घरों के लुट जाने का

कभी-कभी आंधियाँ भी अपना रुख बदल लेती है
अगर कर लो इरादा उनसे भिड़ जाने का

कभी मत उड़ाओ मजाक किसी का
एक दिन इंतजार करोगे तुम ही
उनकी पीठ थप थपाने का

No comments: