Wednesday, October 7, 2020

काटते कटती नहीं है, विरह की ये रैन।

डस रही है आज बैरन, नाग सी ये रात।
रो रहीं हूं याद करके, आपकी हर बात।

नींद आंखों से गयी अब, दूर है सुख चैन।
काटते कटती नहीं है, विरह की ये रैन।
याद आये साजन मुझे, प्रेम की वो बात।
डस रही है आज बैरन, नाग सी ये रात।

माह बीते जा रहे हैं, तू न आया पास
मैं निहारूं वाट तेरी, लेकर यही आस।
प्यास है दिल में मिलन की, समझ लो जज़्बात।
डस रही है आज बैरन, नाग सी ये रात।

याद में तेरी बहें है, आंख से अब नीर।
बात बिसरी याद आये, बढ़ रही है पीर।
सर्द रातें आ रहीं हैं, गिर रहा हिमपात।
डस रही है आज बैरन, नाग सी ये रात।

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