Tuesday, October 6, 2020

मिल के भी जो कभी नहीं मिला

आदमी आदमी से मिलता है 
दिल मगर कम किसी से मिलता है 

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के 
वो कुछ इस सादगी से मिलता है 

आज क्या बात है कि फूलों का 
रंग तेरी हँसी से मिलता है 

सिलसिला फ़ित्ना-ए-क़यामत का 
तेरी ख़ुश-क़ामती से मिलता है 

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता 
टूट कर दिल उसी से मिलता है 

कारोबार-ए-जहाँ सँवरते हैं 
होश जब बे-ख़ुदी से मिलता है 

रूह को भी मज़ा मोहब्बत का 
दिल की हम-साएगी से मिलता है.

जिगर मुरादाबादी

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