वह मेरे साथ के सब तश्ना दहां कैसे हैं
उड़ती-पड़ती ये सुनी थी कि परेशान हैं लोग
अपने ख्वाबों से परेशान हैं लोग
जिस गली ने मुझे सिखलाए थे आदाबे-जुनूं
उस गली में मेरे पैरों के निशां कैसे हैं
शहरे रुसवाई में चलती हैं हवायें कैसी
इन दिनों मश्गलए-जुल्फे परीशां क्या है
साख कैसी है जुनूं वालों की
कीमते चाके गरीबां क्या है
1. रास्ते अपनी नज़र बदला किए
हम तुम्हारा रास्ता देखा किए
अहल-ए-दिल सहरा में गुम होते रहे
ज़िंदगी बैठी रही पर्दा किए
एहतिमाम-ए-दार-ओ-ज़िंदाँ की क़सम
आदमी हर अहद ने पैदा किए
हम हैं और अब याद का आसेब है
उस ने वादे तो कई ईफ़ा किए
हाए-रे वहशत कि तेरे शहर का
हम सबा से रास्ता पूछा किए.
2. हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक क़तरा होगा चाँद
रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद
चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद .
3. जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं
शाख़-ए-गुल कैसी है ख़ुश्बू के मकाँ कैसे हैं
ऐ सबा तू तो उधर ही से गुज़रती होगी
उस गली में मिरे पैरों के निशाँ कैसे हैं
पत्थरों वाले वो इंसान वो बेहिस दर-ओ-बाम
वो मकीं कैसे हैं शीशे के मकाँ कैसे हैं
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आ के देखो मिरी यादों के जहाँ कैसे हैं
कोई ज़ंजीर नहीं लायक़-ए-इज़हार-ए-जुनूँ
अब वो ज़िंदानी-ए-अंदाज़-ए-बयाँ कैसे हैं
ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल
इस ज़माने में वो साहब-नज़राँ कैसे हैं
याद जिन की हमें जीने भी न देगी 'राही'
दुश्मन-ए-जाँ वो मसीहा-नफ़साँ कैसे हैं .
4. इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
- राही मासूम रज़ा
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