Saturday, October 10, 2020

हम परेशाँ ही रहे अपने ख़यालों की तरह

फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह 
हम परेशाँ ही रहे अपने ख़यालों की तरह 

शीशागर बैठे रहे ज़िक्र-ए-मसीहा ले कर 
और हम टूट गए काँच के प्यालों की तरह 

जब भी अंजाम-ए-मोहब्बत ने पुकारा ख़ुद को 
वक़्त ने पेश किया हम को मिसालों की तरह 

ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं 
याद हम आएँगे दुनिया को हवालों की तरह

सुदर्शन फ़ाकिर

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