यूं ही नहीं ये आंखो में नमी है...
चल तो रही है भरपूर सांसे
ना जाने क्यूं ये ज़िन्दगी थमी है...
जो सोचा करते थे के इस दुनिय में बस हम ही हैं,
आज उनकी निगाहें भी दूसरों पर जमी है ...
सुख चैन और अमन ढूंढने निकले थे ,
ना जाने क्यूं मोह में मुस्तैद हो गये ...
सभी आज़ाद पंछी जो उड़ने निकले थे ,
समाज के पिंजरे में कैद हो गये ...
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