Tuesday, October 20, 2020

चोरी की मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं है

जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से 
फिरता नहीं वो तीर जो निकला कमान से 

आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते 
दो कश्तियाँ मिली हैं डुबोने के वास्ते 

एहसान नहीं ख़्वाब में आए जो मिरे पास 
चोरी की मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं है 

देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से 
हर बुत ख़ुदा है चाहने वालों के सामने 


सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने 
पानी भरे घटा तिरे बालों के सामने 

चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से 
अंगिया का पान देख के मुँह लाल हो गया

मैं जुस्तुजू से कुफ़्र में पहुँचा ख़ुदा के पास 
का'बे तक इन बुतों का मुझे नाम ले गया 

जलसों में गुज़रने लगी फिर रात तुम्हारी 
इस भीड़ में जाती न रहे बात तुम्हारी 

आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते 
दो कश्तियाँ मिली हैं डुबोने के वास्ते 

हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ 
प्यारी प्यारी है कलाई प्यारी प्यारी चूड़ियाँ

बे-वक़्त जो घर से वो मसीहा निकल आया 
घबरा के मिरे मुँह से कलेजा निकल आया  

कंघी से इतनी देर में सुलझाई एक ज़ुल्फ़ 
ऐ जान आधी रात बखेड़े में ढल गई 

जुदाई के सदमों को टाले हुए हैं 
चले जाओ हम दिल सँभाले हुए हैं 

ज़माने की फ़िक्रों ने खाया है हम को 
हज़ारों के मुँह के निवाले हुए हैं 

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