Monday, October 12, 2020

तू चाहिए न तेरी वफ़ा चाहिए मुझे - ख़ुमार बाराबंकवी

तू चाहिए न तेरी वफ़ा चाहिए मुझे 
कुछ भी न तेरे ग़म के सिवा चाहिए मुझे 

मरने से पहले शक्ल ही इक बार देख लूँ 
ऐ मौत ज़िंदगी का पता चाहिए मुझे 

या रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल 
मैं ने ख़ताएँ की हैं सज़ा चाहिए मुझे 

ख़ामोशी-ए-हयात से उकता गया हूँ मैं 
अब चाहे दिल ही टूटे सदा चाहिए मुझे 

उन मस्त मस्त आँखों में आँसू अरे ग़ज़ब 
ये इश्क़ है तो क़हर-ए-ख़ुदा चाहिए मुझे 

नासेह नसीहतों का ज़माना गुज़र गया 
अब प्यारे सिर्फ़ तेरी दुआ चाहिए मुझे 
हर दर्द को दवा की ज़रूरत है ऐ 'ख़ुमार' 
जो दर्द ख़ुद हो अपनी दवा चाहिए मुझे 

No comments: