Tuesday, October 20, 2020

नभ में जो इक तारा था

नभ में जो इक तारा था
वह तारा भी परदेस गया
मैं एक पंछी बेसहारा
फिरूं इस गगन में आवारा
कोई न डोर है
न जाल है
न किसी की आवाज की गूंज का
इशारा
जो कुछ विद्यमान है
मेरे पीछे पीछे चलता है
बदकिस्मती मेरी है यह कि
मैं आगे आगे बढ़ता हूं
पीछे मुड़कर देख नहीं सकता
संयम खो देता हूं
गिर जाता हूं
साथ है जो साया
उसे पहचान नहीं पा रहा
अपना हो जायेगा पराया
पराया हो जायेगा
साया
साया कर लेगा
मुझसे किनारा
यह सम्पूर्ण प्रक्रिया
सच में
किसी ब्रह्मांड की भांति ही
अनसुलझे रहस्य की तरह
समझ नहीं पाया।

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