Thursday, October 8, 2020

आदमी शायरी

इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं 
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं 
- बशीर बद्र

आदमी आदमी से मिलता है 
दिल मगर कम किसी से मिलता है 
- जिगर मुरादाबादी

सम्भल सम्भल के चलो, ऐहतियात से पहनो, 
बड़े नसीब से मिलता है आदमी का लिबास! 

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया 
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया 
- निदा फ़ाज़ली

समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी 
बंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं 
- सबा अकबराबादी


राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे 
आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद 
- बेख़ुद देहलवी

भीड़ तन्हाइयों का मेला है 
आदमी आदमी अकेला है 
- सबा अकबराबादी

मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर 
मैं आज अपनी ज़ात से घबरा के पी गया 
- साग़र सिद्दीक़ी

आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो 
इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़ 
- हफ़ीज़ जौनपुरी

ख़ुदा बदल न सका आदमी को आज भी 'होश' 
और अब तक आदमी ने सैकड़ों ख़ुदा बदले 
- असग़र मेहदी होश

इतना बे-आसरा नहीं हूँ मैं 
आदमी हूँ ख़ुदा नहीं हूँ मैं 
- परवेज़ साहिर

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