Thursday, October 8, 2020

गुमशुदा ही रहा करता है वो ख़ुद से ही ख़ुद में

एक बिखरा हुआ इंसान बिखरता ही जाता है।
चाहे भी जुड़ना, तो आसानी से न जुड़ पाता है।
गुमशुदा ही रहा करता है वो ख़ुद से ही ख़ुद में,
औरों से क्या, वो तो ख़ुद से ही न मिल पाता है। 


और न याद आ तू अब, और न पल पल मुझे तू यूं आजमा।
एहसास कि कमाल थी मुहब्बत तेरी, फिर से तो न कर बयां।
अब न दिखा ख्वाब बिखरी उम्मीद , कल्पनाओं के आइने में,
न जला फिर से चिराग मायूसियों के इसकदर घनघोर साये में,
इक चिराग यूं बुझ चुका तेरे हाथों से इस कदर हमदम,
हमें उन राख हुये ख्वाबों के अभी तक साये भी न मिले यहाँ।

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