Saturday, October 10, 2020

ऐसा नहीं कि दर्द से ही फ़ासला होते रुका है

ऐसा नहीं कि दर्द से ही फ़ासला होते रुका है,
उसका चेहरा भी तो मेरा आईना होते रुका है।

अब आसमां में देखना क्या पूनम के चांद को,
कल ही बे-घूंघट उसका सामना होते रुका है।

ये ऐसे वैसे लोग भी फूलों में लिपटे हैं लेकिन,
मेरा दिल ही ख़ुशबूओं का रास्ता होते रुका है।

दर पर दस्तक थी मगर, दरवाज़ा खोला नहीं,
तन्हाइयों का ज़िन्दगी से ख़ात्मा होते रुका है।

फ़िज़ा कब बदल दे, मिज़ाज अमीरे शहर का,
कल तक मेरे शहर में भी हादसा होते रुका है।

घर से निकला था अपनी जेब में रखकर पता,
इसलिए वो शख़्स मरकर लापता होते रुका है।

ये ज़िन्दगी जो लौट आयी मेरी मां के बदन में,
यूं मेरा दिल भी ग़मों का थामला होते रुका है।

कुछ समझदार भी बैठे थे गांव की चौपाल पर,
इसलिए कल हाथरस सा मामला होते रुका है।

दोस्त सच कहने की मेरी आदत जो छूटी नहीं,
उसकी महफ़िल में मेरा दाख़िला होते रुका है।

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