Monday, October 26, 2020

मौन धरों ना, कुछ तो बोलो

मौन धरों ना, कुछ तो बोलो,
करो शिकायत रूठो हमसे,
मन के भावों को अपनें तुम,
जैसे भी हो व्यक्त करो तुम
मौन धरों ना कुछ तो बोलो ।
अंतर्मन की पीड़ा को,
यूँ अंतर्मन में ना धरो।
मौन धरों ना कुछ तो बोलो,
अंतिम क्षणों में,प्रिये,मिले थे,
जब हम थे अंतिम बार।
अंतिम शब्द थे प्रिये हमारे,
अंतिम है प्रिये तुमसे मिलन,
कर्म-पथ पर जाना होगा।
अपना धर्म निभाना होगा।
राजनीति का मकड़जाल है ।
दुष्टों का फैला जंजाल है ।
इस जंजाल से मकड़जाल से,
मानवता को मुक्त कराना होगा।
इसी कर्म का धर्म निभाने,
तुमसे दूर अब जाना होगा।
पर शायद ये मेरा भ्रम था।
तुमसे ना मैं दूर जा पाया,
ना ही तुमको मैं भूल ही पाया।
हर पल एक मौन सा चेहरा,
तुम्हारा, प्रिये ,मेरे सपनों में आता,
और तब ये मन हर पल ये ही कहता,
मौन धरों ना कुछ तो बोलो ।
करो शिकायत रूठो हमसे ।
पर यूँ मौन ना धारो तुम
मौन धरों ना कुछ तो बोलो ।
मौन धरों ना कुछ तो बोलो ।
मौन धरों ना कुछ तो बोलो ।
करों शिकायत रूठो हमसे ।।

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