सबके सुख में शामिल हो, दुख में साझेदारी रख।
दरबारों से रख दूरी, फुटपाथों से यारी रख।
चंचल हिरनी बनी डोलती
मन के वन में बाट जोहती,
वैसे तो वह चुप रहती है
भीतर एक नदी बहती है।
चरणों में हिन्द महासागर
जिसके सर पर गौरीशंकर
कुदरत भी जिस पर न्योछावर
न्योछावर है अक्षर-अक्षर
कल्याणमयी जिसकी चाहें
अध्यात्ममयी जिसकी राहें
जगतीतल पर जिसकी छाँहें
पूरब पश्चिम जिसकी बाँहें
जो कर्मपाठ की नौबत है
जो विश्वशान्ति के अक्षत है
जो पढ़ना चाह रही दुनिया
वो इश्क़-मोहब्बत का ख़त है
जिसके आराधन में अर्पित तन-मन-धन- सारा है
प्राणों से प्यारा है, ये देश हमारा है
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