यूं तो सारी जिंदगी ।
पर जीवन के जब पन्ने पलटे,
सारे पन्ने कोरे निकले।
भटके किये बहार की तलाश में,
यूं तो सारी उम्र हम।
जिसको भी अपना समझा,
वो ही बेवफा निकले।
यादों के चराग़ दिल के,
जले कुछ इस तरह से।
ना तो मरे ही हम और,
ना ही जिंदा निकले।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment