नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया
-फ़ना निज़ामी कानपुरी
जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से
फिरता नहीं वो तीर जो निकला कमान से
-मुनीर शिकोहाबादी
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए
-हफ़ीज़ जालंधरी
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
-इफ़्तिख़ार आरिफ़
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