Monday, October 19, 2020

जब सफ़ीना मौज से टकरा गया

जब सफ़ीना मौज से टकरा गया 
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया
-फ़ना निज़ामी कानपुरी

जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से 
फिरता नहीं वो तीर जो निकला कमान से 
-मुनीर शिकोहाबादी


इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ 
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए  
-हफ़ीज़ जालंधरी

दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है 
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है 
-इफ़्तिख़ार आरिफ़

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