तस्वीरों में या तक़दीरों में
सूनी सड़को के अंधियारों में
या बंद कमरे की चित्करों में ?
कहीं नहीं मिलोगे, ना तस्वीरों में
ना ही किसकी की तक़दीरों में
ना ही सूनी सड़को पर
ना ही बंद कमरों की चित्कारों में !
वक़्त है जरा सा ठहर जाओ
स्वयं को दो तनिक वक़्त और भीतर जाओ
करो परीक्षण स्वंय की और बतलाओ
तुम कहीं नहीं हो , ख़ुद में हो !
मन के सहमे कोने में कहीं छिपे हुए हो
या फ़िर किसी की यादों में कहीं बंधे हुए हो
तुम ख़ुद से अनभिज्ञ हो
अरे ! देखो ना तुम रुद्र हो
तुम शून्य हो
किंतु अमूल्य हो !
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