Saturday, October 24, 2020

तुझसे शिक़वा करूँ या करूँ दिल्लगी

तुझसे शिक़वा करूँ या करूँ दिल्लगी ,
है जो तू लायक़,क़ुर्बान करूँ ज़िंदगी।

मैं तेरा मुरीद,है तू मेरी मुरीद अगर,
इबादत करूँ,मैं ख़ुदा की करूँ बन्दग़ी।

पुश्तैनी इश्क़ तुझसे,कर चाहे शिनाख़्त,
आरज़ू नहीं मुल्क़ की,तेरी है तिश्नग़ी।

शुद-ख़सारे से,बेशक़ दूर है अब तल्क़,
अपनी फ़ितरत यही है सादग़ी।

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