Sunday, October 18, 2020

ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है

कब उन आंखों का सामना न हुआ
तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ
- मुबारक अज़ीमाबादी


खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को
- नज़ीर बाक़री


बहुत सुकून से रहते थे हम अंधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
- आलम ख़ुर्शीद

तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
- वसीम बरेलवी

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