Wednesday, October 7, 2020

इंतिहा, इन्तहाँ शायरी

इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
- अल्लामा इक़बाल


तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूं
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूं
- अल्लामा इक़बाल

वो ज़िक्र था तुम्हारा जो इंतिहा से गुज़रा
ये क़िस्सा है हमारा जो ना-तमाम निकला
- क़लक़ मेरठी


न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
रहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम
- फ़ानी बदायूंनी

ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं
ऐसा मकां है जिस में कोई हम-नफ़स नहीं
-,मुनीर नियाज़ी


इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
- कैफ़ी आज़मी

हम इब्तिदा ही में पहुंचे थे इंतिहा को कभी
अब इंतिहा में भी हैं इब्तिदा से लिपटे हुए
- फ़रियाद आज़र


हम मोहब्बत की इंतिहा कर दें
हाँ मगर इब्तिदा करे कोई
- शफ़ी मंसूर

इब्तिदा मुझ में इंतिहा मुझ में
इक मुकम्मल है वाक़िआ मुझ में
- सईद नक़वी


इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
अब उसे ऐसे ही समझाता हूँ मैं
- शारिक़ कैफ़ी


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