Monday, October 5, 2020

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को बनती यहां प्रिये
संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने
हम कहां और तुम कहां प्रिये।

पल-भर तो साथ-साथ बह लें,
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

आओ कुछ ले लें औ' दे लें।

हम हैं अजान पथ के राही,
चलना जीवन का सार प्रिये
पर दुःसह है, अति दुःसह है
एकाकीपन का भार प्रिये।

पल-भर हम-तुम मिल हंस-खेलें,
आओ कुछ ले लें औ' दे लें।

हम-तुम अपने में लय कर लें।

उल्लास और सुख की निधियां,
बस इतना इनका मोल प्रिये
करुणा की कुछ नन्हीं बूंदें
कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये।

#सौरभ से अपना उर भर लें,
हम तुम अपने में लय कर लें।

हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।
जग के उपवन की यह मधु-श्री,
सुषमा का सरस वसन्त प्रिये
दो साँसों में बस जाय और
ये साँसें बनें अनन्त प्रिये।

मुरझाना है आओ खिल लें,
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

No comments: