Tuesday, October 13, 2020

पथिकों के लिए पदचिह्न ....

मंजिलों का न कोई
ओर होता है न कोई छोर
पथिक हैं सब अनजानी राहों के
पर वक़्त पर भी चलता न कोई जोर
सफ़र वो भी जारी रखते हैं
जो जानते हैं मंजिलें मृगतृष्णा हैं
जो अपनी राहों के खुद निर्माता हों
वो कब परवाह करते हैं
कुछ पाने और खोने की
ये गांठ बांध अग्रसर होते हैं कर्मपथ पर
कि सबसे आगे नहीं तो
सबसे पीछे भी नहीं हैं हम
निरंतर आगे ही बढ़ रहे हैं हम
कम-से-कम पीछे तो नहीं
मुड़ रहे हैं हम
सदा तसल्ली होगी कि
कुछ तो है जो छोड़े जा रहे हैं
किसी और के जो काम आ सके l

अपने पीछे चले आ रहे
पथिकों के लिए पदचिह्न ....

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