Saturday, October 31, 2020

हर सुब्ह धूप तुझे जगाती है तेरी पलक को छूकर

हर सुब्ह धूप तुझे जगाती है तेरी पलक को छूकर
खुशबू फूले नहीं समाती है तेरी अलक को छूकर

हम अगर तेरा साया भी छू लें तो हंगामा हो जाए
तितली मगर उड़ जाती है तेरे लब तलक को छूकर

बुलन्दियों की ख्वाहिश भी बड़ी अजीब ख्वाहिश है
मेरी तमन्ना जमीं पे लौट आती है रोज़ फलक को छूकर

मैं सच बोल तो दूं हुकूमत का कच्चा चिट्ठा खोल तो दूं
मगर एक तलवार मुझे डरा जाती है मेरे हलक को छूकर

'नामचीन' दुनिया पर खुदा की मेहरबानियां बहुत हैं
तभी तो हर कयामत लौट जाती है इस खलक को छूकर

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