खुशबू फूले नहीं समाती है तेरी अलक को छूकर
हम अगर तेरा साया भी छू लें तो हंगामा हो जाए
तितली मगर उड़ जाती है तेरे लब तलक को छूकर
बुलन्दियों की ख्वाहिश भी बड़ी अजीब ख्वाहिश है
मेरी तमन्ना जमीं पे लौट आती है रोज़ फलक को छूकर
मैं सच बोल तो दूं हुकूमत का कच्चा चिट्ठा खोल तो दूं
मगर एक तलवार मुझे डरा जाती है मेरे हलक को छूकर
'नामचीन' दुनिया पर खुदा की मेहरबानियां बहुत हैं
तभी तो हर कयामत लौट जाती है इस खलक को छूकर
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