और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूं देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं #अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-
थाल में लाऊं सजाकर भाल मैं जब भी,
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण।
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
रक्त का कण-कण समर्पित।
चाहता हूं देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं।
मांज दो तलवार को, लाओ न देरी,
बांध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया धनेरी।
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
चाहता हूं देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं।
तोड़ता हूं मोह का बंधन, क्षमा दो,
गांव मेरी, द्वार-घर मेरी, आंगन, क्षमा दो,
आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो,
और बाएं हाथ में ध्वज को थमा दो।
सुमन अर्पित, चमन अर्पित,
नीड़ का तृण-तृण समर्पित।
चाहता हूं देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूं।
-रामावतार त्यागी
अकिंचन- 1. अतिनिर्धन; दरिद्र; कंगाल; दिवालिया 2. अपरिग्रही 3. नगण्य; मामूली; महत्वहीन 4. परावलंबी 5. गुमनाम
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