Wednesday, October 14, 2020

आस, नसीहत शायरी

रोज़ इस आस पे दरवाज़ा खुला रखता हूँ
शायद आ जाए वो चुपके से कभी उस जानिब
- फ़ैसल हाश्मी

आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
आस बिखरने पर सब चीज़ें ख़ुद ही उठा के रखता हूँ
- अजमल सिद्दीक़ी

सच्ची ख़ुशी की आस न टूटे दुआ करो
झूटी तसल्लियों से बहलते रहा करो
- अय्यूब फ़हमी


तेरी सदा की आस में इक शख़्स रोएगा
चेहरा अँधेरी रात का अश्कों से धोएगा
- प्रकाश फ़िक्री

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या
तस्वीर-ए-रोज़गार से दिल है उदास क्या
- हसन नईम


ख़्वाब में कोई मुझ को आस दिलाने बैठा था
जागा तो मैं ख़ुद अपने ही सिरहाने बैठा था
- इरफ़ान सत्तार

बादलों की आस उस के साथ ही रुख़्सत हुई
शहर को वो आग की बे-रहमियाँ भी दे गया
- अज़रा वहीद

तुम्हारी गुफ़्तुगू से आस की ख़ुश्बू छलकती है
जहाँ तुम हो वहाँ पे ज़िंदगी मालूम होती है
- अफ़रोज़ आलम

वफ़ा की आस में दिल दे के पछताया नहीं करते
ये नख़्ल-ए-आरज़ू है इस में फल आया नहीं करते
- रियासत अली ताज

मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में
मुरझा के आ गिरा हूँ मगर सर्द घास में
- शकेब जलाली

बारहा बात जीने मरने की
एक बिखरी सी आस हो तुम भी
- आलोक मिश्रा

मिरी उम्मीद का सूरज कि तेरी आस का चाँद
दिए तमाम ही रुख़ पर हवा के रक्खे थे
- ज़फ़र मुरादाबादी

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