तेरा एहसास गर नहीं होता।
दामन इतना भी तर नहीं होता।।
तुम समझ लेते मेरी ख़ामोशी।
कोई शिकवा भी फिर नहीं होता।।
ख़ौफ खाते अगर गुनाहों से।
मौत का भी फिर डर नहीं होता।।
एक होती हमारी मंज़िल भी।
मुश्किल इतना सफ़र नहीं होता।।
तेरा एहसास गर नहीं होता।
दामन इतना भी तर नहीं होता।।
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