रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा
मैं जहां तुम को बुलाता हूं वहां तक आओ
मेरी नज़रों से गुज़र कर दिल-ओ-जां तक आओ
अब आ गया है जहां में तो मुस्कुराता जा
चमन के फूल दिलों के कंवल खिलाता जा
मय है तेरी आंखों में और मुझ पे नशा सा तारी है
नींद है तेरी पलकों में और ख़्वाब मुझे दिखलाए है
आंधियां चलती रहें अफ़्लाक थर्राते रहे
अपना परचम हम भी तूफ़ानों में लहराते रहे
सुब्ह हर उजाले पे रात का गुमां क्यूं है
जल रही है क्या धरती अर्श पे धुआं क्यूं है
इश्क़ का नग़्मा जुनूं के साज़ पर गाते हैं हम
अपने ग़म की आंच से पत्थर को पिघलाते हैं हम
सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
हज़ारों नामा-हा-ए-शौक़ अहल-ए-दिल के काम आए
न जाने छलकाए जाम कितने न जाने कितने सुबू उछाले
मगर मिरी तिश्नगी कि अब भी तिरी नज़र से शिकायतें हैं
ताकि दुनिया पे खुले उन का फ़रेब-ए-इंसाफ़
बे-ख़ता हो के ख़ताओं की सज़ा मांगते हैं
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