Sunday, November 22, 2020

पत्तों की तरह टूटकर शाखों से हम बिखर नहीं सकते

जो चाहे हो जाए समझौता उसूलों से हम कर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की इन धमकियों से हम डर नहीं सकते

उसूलों के शज़र से लिपटे हैं शहद के छत्तों की तरह
पत्तों की तरह टूटकर शाखों से हम बिखर नहीं सकते

हयात के सफर में अब तक अंगारों पर चले हैं
कांटों में पले हैं रास्ते के शूलों से हम डर नहीं सकते

पहले क्यों बिठाया था उठाकर हमें अपने ठिकानों से
अब ए जिन्दगी तेरे शानों से हम उतर नहीं सकते

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