तुम्हारी मौत की इन धमकियों से हम डर नहीं सकते
उसूलों के शज़र से लिपटे हैं शहद के छत्तों की तरह
पत्तों की तरह टूटकर शाखों से हम बिखर नहीं सकते
हयात के सफर में अब तक अंगारों पर चले हैं
कांटों में पले हैं रास्ते के शूलों से हम डर नहीं सकते
पहले क्यों बिठाया था उठाकर हमें अपने ठिकानों से
अब ए जिन्दगी तेरे शानों से हम उतर नहीं सकते
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