कभी दुश्मन से तो कभी दोस्त से लड़ जाता हूँ
सुकून मिलता नहीं इस बेडौल दुनिया में,
कभी झूठ से तो कभी सच से लड़ जाता हूँ।
बेगैरत बेहया कई लोग यहां मिलते हैं,
दूसरे के ग़मों में कई हँसते हुए मिलते हैं।
कुछ पैदा करते हैं औरों के लिए मुश्किलें,
कुछ अपनों के ही सरदर्द बने मिलते हैं।
गरीबों का मसीहा बन उनका ही खून चूसने वाले,
सफेद पोशाक में कई काले दिल मिलते हैं।
ऐसे लोगों से बेवजह ही लड़ जाता हूँ।
पागल हूँ इतना कि यमराज से लड़ जाता हूँ।
इंसान हूँ इसलिए भगवान से लड़ जाता हूँ।
कभी दुश्मन से तो कभी दोस्त से लड़ जाता हूँ।
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