Friday, November 6, 2020

उनकी याद तिर रही है

उनकी याद तिर रही है
मन व उर को चिर रही है
उनकी याद तिर रही है
देह तन को झल रही है
बहुत याद तिर रही है
रात भर रहती जगाती
हाॅय ! ये कैसी घड़ी है
जो उर में आग लगी है
अब वो सब नीरस पड़ा है
जिसका रस था मधुमयी
उनकी याद आ रही है
जो कि सारे छूट गये थे
बिन वजह ही रूठ गये थे
हवा छर-छर बह रही है
पत्ते झर-झर चल रहे है
वन ये सारा मौन पड़ा है
जैसे वर्षा में पिक खड़ा
एक पंछी बोल रहा है
घाव उर के खोलता है
हाॅय ! मैं कितना अभागा
व्योम से टूटा सितारा
उनकी मुझसे दूरी है जो
वो जो खुशी के पुर है जो
दृश्य उसके बाद का रे
उन सभी के याद का रे
उनकी याद तिर रही है
मन प्रीत को घिर रही है
उनकी याद तिर रही है
मन ही मन में चीर रही है
बहुत याद तिर रही है
वे नजर में तिर रहे है ।

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