गुजरते हुए लम्हों में खुद को ही पाना।
देखता नील समुंदर, कोरे कागजों सी जिंदगी,
लम्हों में हसरतें बादलों सा भर जाना।
रातों में तारो संग, आभूषण सा सज जाता
जिंदगी की गलियों में सदा चलते ही जाना।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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