तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
जौन एलिया
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
अहमद फ़राज़
दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते
अब कोई शिकवा हम नहीं करते
जौन एलिया
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
मिर्ज़ा ग़ालिब
रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए
दाग़ देहलवी
क्यूं हिज्र के शिकवे करता है क्यूं दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
हफ़ीज़ जालंधरी
कहने देती नहीं कुछ मुंह से मुहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
दाग़ देहलवी
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मुहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
बासिर सुल्तान काज़मी
मुहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मुहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है
शकील बदायूंनी
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