Tuesday, November 24, 2020

इश्क ज़ज्बात शायरी

कैसे कहें कि तुझको भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
जौन एलिया

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
अहमद फ़राज़

दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते
अब कोई शिकवा हम नहीं करते
जौन एलिया

कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
मिर्ज़ा ग़ालिब

रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा

बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए
दाग़ देहलवी

क्यूं हिज्र के शिकवे करता है क्यूं दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
हफ़ीज़ जालंधरी

कहने देती नहीं कुछ मुंह से मुहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
दाग़ देहलवी

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मुहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
बासिर सुल्तान काज़मी

मुहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मुहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है
शकील बदायूंनी

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