Thursday, November 12, 2020

जामुन की इक शाख़ पे बैठी इक चिड़िया

जामुन की इक शाख़ पे बैठी इक चिड़िया 
हरे हरे पत्तों में छप कर गाती है 
नन्हे नन्हे तीर चलाए जाती है 
और फिर अपने आप ही कुछ उकताई सी 
चूँ चूँ करती पर तोले उड़ जाती है 


धुँदला धुँदला दाग़ सा बनती जाती है 
मैं अपने आँगन में खोया खोया सा 
आहिस्ता आहिस्ता घुलता जाता हूँ 
किसी परिंदे के पर सा लहराता हूँ 
दूर गगन की उजयाली पेशानी पर 
धुँदला धुँदला दाग़ सा बनता जाता हूँ 

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