Friday, November 13, 2020

हो रही है साँझ बेला

हो रही है साँझ बेला
चल रहा पथिक अकेला
भोर के जो साथी थे
अब न उनके साथ थे ।
ज्यों ज्यों सूर्य ढल रहा
तिमिर प्रतिपल बढ़ रहा
चेतन अचेतन में
धीरे धीरे बदल रहा ।
शनैः शनैः बिलुप्त होते
सड़क किनारे जो रौनक थी
पास न कोई आ रहा था
तिमिर प्रतिपल बढ़ रहा ।
मैं वाला अहंकार भी अब
धीरे धीरे मर रहा
वासना भी साधना में
धीरे धीरे बदल रहा ।
रवि का अवसान था पर
चंद्र अब निकल रहा
छटपट करती तपीस में
अब शीतलता चहक रहा ।
तरुणाई की अंतिम बेला
संग न कोई संगी मेला
हो रही है साँझ बेला
चल रहा पथिक अकेला ॥

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