हर तरफ़ फैलता धुआँ और हम।”
दीवारो-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं
कोई नहीं बोलता जब तन्हाइयाँ बोलती हैं।
सुनने की मुहलत मिले तो आवाज़ है पत्थरों में
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियाँ बोलती हैं।
चलती-फिरती धूप-छांव से चेहरा बाद में बनता है
पहले पहले सभी ख़्यालों से तस्वीर बनाते हैं।
आँखों देखी कहने वाले पहले भी कम-कम ही थे
अब तो सब ही सुनी सुनाई बातों को दोहराते हैं।
इस धरती पर आकर, अपना कुछ खो जाता है
कुछ रोते हैं, कुछ इस ग़म में अपनी ग़ज़ल सजाते हैं।
"मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन,
आवाज़ों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन।
किरन-किरन अलसाता सूरज पलक-पलक खुलती नीदें
धीमे -धीमें बिखर रहा है ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।"
"धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो।
सिर्फ़ आंखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाइ बनाकर देखो।"
"कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है"
"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीऩ कहीं आस्मां नहीं मिलता"
"कहां चिराग जलाएँ, कहां गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकां नहीं मिलता"
चाहे गीता बांचिये या पढ़िये कोरान
तेरा मेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान।
लेके तनके नाप को घूमें बस्ती गाँव।
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव।
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर।
मेरी आवाज़ाही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ मुझको वहाँ से सुनिये।
मन वैरागी, तन अनुरागी, क़दम-क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सरल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है।
औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है कुछ अपनी अय्यारी है।
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो।
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो।
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको ख़़ुद ही बदल सको तो चलो।
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी।
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी।।
ज़िन्दगी का मुकद्दर सफर दर सफर
आख़िरी सांस तक बेक़रार आदमी।।
हर आदमी में होते हैं, दस बीस आदमी।
जिसको भी देखना हो कई बार देखना।।
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
उठ के कपड़े बदल, घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ।
रात के बाद दिन, आज के बाद कल जो हुआ सो हुआ।
"छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाँहों भर संसार।"
"सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना सांसों का इतिहास।"
गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने, बच्चों को गुड़धानी दे मौला।
फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नयी सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला।
ख़ून से तर-ब-तर कर के हर रहगुज़र थक चुके जानवर
लकड़ियों की तरह फिर से चूल्हे में जल जो हुआ सो हुआ
जो मरा क्यूँ मरा जो लुटा क्यूँ लुटा जो जला क्यूँ जला
मुद्दतों से हैं गुम इन सवालों के हल जो हुआ सो हुआ
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया
इक इश्क़ नाम का जो परिंदा ख़ला में था
उतरा जो शहर में तो दुकानों में बट गया
पहले तलाशा खेत फिर दरिया की खोज की
बाक़ी का वक़्त गेहूँ के दानों में बट गया
जब तक था आसमान में सूरज सभी का था
फिर यूँ हुआ वो चंद मकानों में बट गया
हैं ताक में शिकारी निशाना हैं बस्तियाँ
आलम तमाम चंद मचानों में बट गया
ख़बरों ने की मुसव्वरी ख़बरें ग़ज़ल बनीं
ज़िंदा लहू तो तीर कमानों में बट गया
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