तो कहते रहिये
थोड़ा झुकने को आप बंदगी कहते हैं
तो कहते रहिये
आपके बस की नहीं हैं ये हुस्न की बातें
ज़ुल्फ के खम को आप पेचीदगी कहते हैं
तो कहते रहिये
बड़े मगरूर रहे बुलाने पे नहीं आते हैं
अगर आ ही गए तो उखड़े से नजर आते हैं
ऐसे आने को आप मौजूदगी कहते हैं
तो कहते रहिए
उनकी अनदेखी मेरी जान लिए जाती है
लम्हा लम्हा मुझे बीमार किए जाती है
इसे आप ज़ुल्म की बानगी कहते हैं
तो कहते रहिए
सामने मीठा पीठ पीछे बुराई का ज़हर
ऐसे विकार को आप सादगी कहते हैं
तो कहते रहिए
अपने हालात पर हर वक्त बिसूरते रहना
ऐसे रोने को आप संजीदगी कहते हैं
तो कहते रहिये
मुझे धमका के आखिर आपने रुला ही दिया
ऐसे व्यवहार को आप दिल्लगी कहते हैं
तो कहते रहिए
ठोकर खाता हूं और फिर गिर के संभल जाता हूं
मेरे गिरने को आप शर्मिंदगी कहते हैं
तो कहते रहिये
भीड़ के शोर में चुपचाप खड़ा रहता हूं
मैं किसी और से नहीं खुद से ख़फा रहता हूं
मेरी ख़ामोशी को नाराज़गी कहते हैं
तो कहते रहिए
हर तरफ धूल है धुन्ध है धुआँ है मगर
इसे मौसम की आप ताज़गी कहते हैं
तो कहते रहिए
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