Tuesday, November 3, 2020

आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया

जो ज़ेहन-ओ-दिल के ज़हरीले बहुत हैं
वही बातों के भी मीठे बहुत हैं
- अख़तर शाहजहाँपुरी

मैं तो ज़हरीले साँपों को अब भी दूध पिलाता हूँ
ये मेरी फ़ितरत है 'अख़्तर' या मेरी नादानी है
- अख़्तर अब्दुर्रशीद

नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग
क्या अजब लोग हैं ज़िंदान बनाते हुए लोग
एहतिमाम सादिक़

तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है
- ज़ुबैर अली ताबिश

अपने ज़हरीले दाँत गाड़ ने के लिए
जब वो फनफना कर बाहर आते हैं
- परवेज़ शहरयार

औरों पर इल्ज़ाम-तराशी फ़ितरत है हम लोगों की
सच पूछो तो पाल रखे हैं हम ने ख़ुद ज़हरीले नाग
- शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया
कितने नक़ाब चेहरा-ए-असरार से उठे
-अकबर हैदराबादी 

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया 
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया 
- निदा फ़ाज़ली

है देखने वालों को संभलने का इशारा
 थोड़ी सी नक़ाब आज वो सरकाए हुए हैं
-अर्श मलसियानी

जो ज़ेहन-ओ-दिल के ज़हरीले बहुत हैं 
वही बातों के भी मीठे बहुत हैं
- अख़तर शाहजहाँपुरी

उन से बच कर चलना बाबा ये क़ातिल ज़हरीले हैं
सूरत के मोहन हैं भीतर से सब नीले पीले हैं
- अनवर साबरी

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