मरना कितना आसां है यहां जीना कितना भारी है।
बेटी घर से बाहर हो तो दिल घबराता रहता है,
कदम-कदम सैयाद खड़े हैं बहुत बड़ी दुश्वारी है।
तहजीबों के कातिल है जो महफ़िल रोज सजाते हैं,
फिर भी खुद को नायक कहते ये कैसी फ़नकारी है।
रिश्ते, नाते, ईमान,जमीर सब बिकता है बाजारों में,
जिसने खुद को जितना बेचा वो उतना बड़ा व्यापारी है ।
अपनो में भी तन्हा है सब हर चेहरा अंजाना है,
दिनेश समझ लो बस इतना अब ये ही दुनियादारी है ।
1 comment:
श्रीमान आपने मेरी गज़ल को अपने संग्रह में स्थान दिया इसके लिए धन्यवाद।
यदि आप अन्य रचनाकारों की तरह रचियता में मेरा नाम भी दे देंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा ।
दिनेश कुमार चड्डा
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