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बिहार में 4638 असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए बढ़ेगी आवेदन की आखिरी तारीख
'बताओ रूह के कांटे कहां निकालूं मैं', पढ़ें नोमान शौक़ की शायरी
नोमान शौक़ की शायरी (Noman Shauq Shayari): एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ, एक दिन जिस से झगड़ते थे उसी के हो गए...
बिहार में 4638 असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए बढ़ेगी आवेदन की आखिरी तारीख
नोमान शौक़ की शायरी mage Credit/Pexels Ylanite-Koppens
NEWS18HINDI
LAST UPDATED: OCTOBER 30, 2020, 9:55 AM IST
नोमान शौक़ की शायरी (Noman Shauq Shayari) : नोमान शौक़ का नाम शायरी की दुनिया में बेहद अदब के साथ लिया जाता है. नोमान शौक़ बिहार के आरा से ताल्लुक रखते हैं. नोमान शौक़ की शायरी में प्रेम और प्रतिरोध का अनोखा मेल आप देख सकते हैं. नोमान शौक़ जलता शिकारा ढूंढने में, फ़्रीज़र में रखी शाम, अपने कहे किनारे उर्दू में और कविता संग्रह रात और विषकन्या जैसी प्रसिद्ध रचनाएं लिखी हैं. उन्होंने आकाशवाणी की विदेश प्रसारण सेवा में भी काम किया है. आज हम आपके लिए रेख्ता के साभार से लेकर आए हैं नोमान शौक़ की शायरी...
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1. अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैं
ये ख़ार-ओ-ख़स का बदन फूँक ही न डालूँ मैं
गर एक दिल से नहीं भरता मेरे यार का दिल
तो इक बदन में भला कितने साँप पालूँ मैं
न क़ब्र की है जगह शहर में न मस्जिद की
बताओ रूह के काँटे कहाँ निकालूँ मैं
सदाक़तों पे बुरा वक़्त आने वाला है
अब उस के काँपते हाथों से आईना लूँ मैं
कई ज़माने मिरा इंतिज़ार करते हैं
ज़मीं रुके तो कोई रास्ता निकालूँ मैं
मैं आँख खोल के चलने की लत न छोड़ सका
नहीं तो एक न इक रोज़ ख़ुद को पा लूँ मैं
हज़ार ज़ख़्म मिले हैं मगर नहीं मिलता
वो एक संग जिसे आइना बना लूँ मैं
सुनो मैं हिज्र में क़ाएल नहीं हूँ रोने का
कहो तो जश्न ये अपनी तरह मना लूँ मैं .
2. क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
आप तो आए नहीं पर फूल महँगे हो गए
एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
एक दिन जिस से झगड़ते थे उसी के हो गए
मुझ को इस हुस्न-ए-नज़र की दाद मिलनी चाहिए
पहले से अच्छे थे जो कुछ और अच्छे हो गए
मुद्दतों से हम ने कोई ख़्वाब भी देखा नहीं
मुद्दतों इक शख़्स को जी भर के देखे हो गए
बस तिरे आने की इक अफ़्वाह का ऐसा असर
कैसे कैसे लोग थे बीमार अच्छे हो गए .
3.आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
एक मजमे के लिए शेर सुनाते हुए हम
किस गुमाँ में हैं तिरे शहर के भटके हुए लोग
देखने वाले पलट कर नहीं जाते हुए हम
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता है
तेरी लिक्खी हुई दुनिया को मिटाते हुए हम
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
याद तो होंगे तुझे हाथ हिलाते हुए हम
तोड़ डालेंगे किसी दिन घने जंगल का ग़ुरूर
लकड़ियाँ चुनते हुए आग जलाते हुए हम
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
ख़ुद को याद आते ही बे-साख़्ता हँस पड़ते हैं
कभी ख़त तो कभी तस्वीर जलाते हुए हम .
4. बताऊँ कैसे कि सच बोलना ज़रूरी है
तअल्लुक़ात में ये तजरबा ज़रूरी है
नज़र हटा भी तो सकती है कम-नज़र दुनिया
वहीं है भीड़ जहाँ तख़लिया ज़रूरी है
तिरे बग़ैर कोई और इश्क़ हो कैसे
कि मुशरिकों के लिए भी ख़ुदा ज़रूरी है
नहीं तो शहर ये सो जाएगा सदा के लिए
मुझे ख़बर है मिरा बोलना ज़रूरी है
किसी को होता नहीं यूँ मोहब्बतों का यक़ीं
चराग़ बुझ के बताए हवा ज़रूरी है
मैं ख़ुद को भूलता जाता हूँ और ऐसे में
तिरा पुकारते रहना बड़ा ज़रूरी है
वो मेरी रूह की आवाज़ सुन रहा होगा
बदन रहे न रहे राब्ता ज़रूरी है .
5. बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
हम ने तिरा जवाब भी तय्यार कर दिया
तौक़-ए-बदन उतार के फेंका ज़मीं से दूर
दुनिया के साथ चलने से इंकार कर दिया
ख़ुद ही दिखाए ख़्वाब भी तौसी-ए-शहर के
जंगल को ख़ुद ही चीख़ के हुशियार कर दिया
जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल
मौक़ा जिसे जिधर से मिला वार कर दिया
आए थे कुछ सितारे तिरी रौशनी के साथ
हम अपने ही नशे में थे इंकार कर दिया
वो नींद थी कि मौत मुझे कुछ पता नहीं
गहरे घने सुकूत ने बेदार कर दिया
हम आईने के सामने आए तो रो पड़े
उस ने सजा-सँवार के बे-कार कर दिया .