तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
(मुनव्वर राना)
#2
बे-पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है
(साहिर लुधियानवी)
#3
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
(शेख़ इब्राहीम ज़ौक़)
#4
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
मुझ को तिरी निगाह का इल्ज़ाम चाहिए
(अब्दुल हमीद अदम)
#5
मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए
(अनवर मिर्ज़ापुरी)
#6
बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था मगर
पी के इंसान हुआ जाता है
(शकील बदायुनी)
#7
वाइज़ बड़ा मज़ा हो अगर यूँ अज़ाब हो
दोज़ख़ में पाँव हाथ में जाम-ए-शराब हो
(दाग़ देहलवी)
#8
पी शौक़ से वाइज़ अरे क्या बात है डर की
दोज़ख़ तिरे क़ब्ज़े में है जन्नत तिरे घर की
(शकील बदायुनी)
#9
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की
तौबा के साथ तोड़िए बोतल शराब की
(ज़हीर देहलवी)
#10
ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ
(शाहिद कबीर)
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