Thursday, May 28, 2020

मैं एक नदी सी

मैं एक नदी सी
फिसलती हुई एक पहाड़ी से
सागर की गोद में जा गिरी
सागर ने भी मुझ अभागी को
अपनाया नहीं
लाकर पटक दिया किनारे
पे
अब किनारा भी वापिस
धकेल रहा है
सागर में
सागर वापिस फेंक रहा है
मुझे किनारे पे
कैसी विडम्बना है
विकट समस्या है
क्या करूं मैं
क्या हल है इसका
सागर का किनारा
मुझे अपनाने को
एक शर्त पर तैयार है
वह यह कि
मुझे अपने अस्तित्व
को त्यागना होगा
जल को वाष्प बन
उड़ाना होगा
सागर किनारे पे
एक छोटे से आशियाने में
सिर छिपाने के लिए
मुझे खुद को भुलाना होगा
खुद को सुखाना होगा।

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