Thursday, May 21, 2020

कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी

ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
- अब्दुल हमीद अदम



मैं समझता हूँ कि है जन्नत ओ दोज़ख़ क्या चीज़
एक है वस्ल तिरा एक है फ़ुर्क़त तेरी
- जलील मानिकपूरी



कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए
- शाद आरफ़ी

मिरे हालात को बस यूँ समझ लो
परिंदे पर शजर रक्खा हुआ है
- शुजा ख़ावर

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